Earn money on line and improve your GK
Get your website at top in all search engines
Contact Rajat Gupta at 
9810213037, or
Go to his site

For free advice on management systems - ISO 9001, ISO 14001, OHSAS 18001, ISO 22000, SA 8000 etc.
Contact S. C. Gupta at 9810073862
e-mail to qmsservices@gmail.com
Visit http://qmsservices.blogspot.com

Saturday, February 28, 2009

मानवीय संबंधों का घोषणापत्र

पिछल प्रसंग में आपने पढ़ा कि अमरेन्द्र ने अपने नामांकन पत्र और शपथ पत्रों की प्रतिलिपि सुधांशु को सौंप दी थी. इनकी प्रतिलिपियाँ अब लगभग सबके पास उपलब्ध थीं. लोग इन की बात कर रहे थे. कुछ इनका मजाक उड़ा  रहे थे. कुछ बहुत ज्यादा उत्साहित थे. मैं भी अपने अन्दर एक उत्साह और नई चेतना का अनुभव कर रहा था. टीवी चेनल ने यह घोहना कर दी थी कि अब प्रतिदिन एक कार्यक्रम दिखाया जायेगा जिस में अमरेन्द्र अपने विचार रखेंगे, अपने कार्यक्रम और नीतियों से सबको परिचित कराएँगे, और लोग उनसे सवाल पूछ सकेंगे. 

आज के कार्यक्रम में अमरेन्द्र ने कहा, 'आज भारतीय समाज में मानवीय संबंधों की संकट-स्थिति चल रही है. परिवार के अन्दर, परिवार के बाहर, मोहल्ले में, शहर में, देश में, स्कूलों में, दफ्तरों में, यहाँ तक की लोक सभा और विधान सभाओं में भी मानवीय सम्बन्ध कटुता की हर सीमा पार कर चुके हैं. सड़क पर जरा सी बात पर जिन्दगी मौत में बदल दी जाती है. लालच ने मानवीय संबंधों की बलि चढा दी है. ऐसे वातावरण में जन प्रतिनिधिओं का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह मानवीय संबंधों के उच्च आदर्श स्थापित करें. इस के लिए उन्हें अपने निजी "मानवीय सम्बन्ध घोषणापत्र" जारी करने चाहियें और यह शपथ लेनी चाहिए कि वह इस घोषणापत्र में किये गए संकल्पों को हर हाल में पूरा करेंगे. 
मैंने जिस घोषणापत्र  पर हस्ताक्षर किये हैं वह है:

"मानवीय संबंधों का घोषणापत्र 
मैं, अमरेन्द्र, भारत देश का एक गर्वान्वित नागरिक, यह शपथ लेता हूँ कि - 
- मेरे जीवन का उद्देश्य होगा - हर चेहरे पर मुस्कान लाना, और इस के लिए मैं, अपनी पूरी क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता से भारतीय नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में लगातार सुधार करने के लिए अनवरत प्रयत्न करूंगा. 
- इस के लिए, 'चुनाव जीतूंगा तभी ऐसा करूंगा' जैसी कोई शर्त नहीं होगी. चुनाव जीतूँ या न जीतूँ, मैं इस कार्य में अनवरत लगा रहूँगा. 
- मैं प्रेमपूर्ण मानवीय संबंधों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता हूँ. 
- मैं यह मानता हूँ कि विकास दीर्घकालिक और चिरस्थायी होना चाहिए.
- विकास का फल हर नागरिक को मिलना चाहिए.
- ऐसा तब तक संभव नहीं है जब तक हमारे एक दूसरे से सम्बन्ध प्रेमपूर्ण न हों.
- मेरा सम्बन्ध हर दूसरे व्यक्ति से तीन स्तर पर होगा - व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय.
- व्यक्तिगत स्तर पर यह सम्बन्ध इंसानियत और भलमनसाहत के सिद्धांतों पर आधारित होगा, क्योंकि हर दूसरा व्यक्ति मेरी तरह ही एक इंसान है.
- सामाजिक स्तर पर यह सम्बन्ध शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित होगा, क्योंकि मेरी तरह हर दूसरा व्यक्ति इस महान भारतीय समाज का सदस्य है.
- राष्ट्रीय स्तर पर यह सम्बन्ध राष्ट्रीयता के सिद्धांतों पर आधारित होगा, क्योंकि मेरी तरह हर दूसरा व्यक्ति इस महान भारत राष्ट्र का नागरिक है.
- हर दूसरे व्यक्ति के साथ मेरा व्यवहार इन सिद्धांतों पर आधारित होगा.
- मेरा धर्म, मेरा रहन-सहन, मेरी भाषा, मेरी व्यक्तिगत आस्था का हिस्सा होंगे.
- हर दूसरे व्यक्ति का धर्म, रहन-सहन, भाषा उसकी व्यक्तिगत आस्था का हिस्सा होंगे, मैं उनका आदर करूंगा और कभी ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिस से उनकी भावनाएं आहत हों. 
- मेरी हर व्यक्तिगत आस्था, हर दूसरे व्यक्ति के साथ मेरे संबंधों को और मजबूत बनाएगी. 
- इन संबंधों को आधार बनाकर मैं एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए कार्य करूंगा जहाँ कोई अन्याय, भेद-भाव और शोषण न हो, जहाँ हर नागरिक राष्ट्र निर्माण में सहभागी हो."

क्रमशः  

चुनाव जीतना अंतिम उद्देश्य नहीं है !!!

पिछले प्रसंग में आपने पढ़ा कि टीवी चेनल पर अपने इंटरव्यू में अमरेन्द्र ने कहा कि चुनाव एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है. कोई भी नागरिक जनता का प्रतिनिधित्व करने का प्रस्ताव रख सकता है. एक से अधिक प्रस्तावक होने की स्थिति में चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था करता है जिस में जनता किसी एक प्रस्ताव का अनुमोदन कर सके. जिस प्रस्तावक के प्रस्ताव को बहुमत का अनुमोदन मिलता है वह आधिकारिक रूप से अगले पांच वर्ष के लिए जनता का प्रतिनिधित्व करता है. इस सारी प्रक्रिया को चुनाव की संज्ञा दी गई है. अमरेन्द्र ने कुछ नया नहीं कहा पर जिस अंदाज में उन्होंने यह सब कहा और जिन शब्दों का प्रयोग किया उस से चुनाव की एक बिलकुल नई परिभाषा सामने आई, एक नया सोच सामने आया, चुनाव का सही उद्देश्य क्या है यह पता चला. यह सब सुन कर मेरे मन में एक नई आशा का संचार हुआ. मुझे लगा कि यह एक नई वैचारिक क्रांति का शुभारम्भ है. 

अमरेन्द्र ने आगे कहा, 'मेरे लिए चुनाव जीतना अंतिम उद्देश्य नहीं है. मेरा अंतिम उद्देश्य है समाज सेवा. मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि समाज सेवा करने के लिए जन प्रतिनिधि होना जरूरी नहीं है, कोई चुनाव जीतना जरूरी नहीं है. हाँ यह सच है कि जन प्रतिनिधि के रूप में समाज सेवा और अधिक प्रभावशाली रूप से की जा सकती है. हमारे देश की प्रजातांत्रिक प्रबंध व्यवस्था में जन प्रतिनिधि को कुछ ऐसे अधिकार मिलते हैं जिन का सही प्रयोग जनता की सेवा करने में सहायक हो सकता है. लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि इन अधिकारों का दुरूपयोग किया जाता है, जन प्रतिनिधि यह अधिकार पा कर निरंकुश शासक बन जाते हैं और तानाशाहों जैसा व्यवहार करने लगते हैं. आज़ादी के इन ६० वर्षों में जन प्रतिनिधियों के आचरण में जो गिराबट आई है उस ने भारतीय प्रजातंत्र का  नाम बदनाम किया है. जिनसे मानवीय मूल्यों के आदर्श स्थापित करने की अपेक्षा की गई थी उन्होंने इन मूल्यों को पतन के गर्त में झोंक दिया. इस लिए यह जरूरी है कि हम फिर एक क्रान्ति की शुरुआत करें और भारत को  इस अधोपतन की दासता से मुक्त कराएँ'. 

केमरा फिर एक बार सब पर घूम गया. सब मंत्रमुग्ध से बैठे थे. अमरेन्द्र ने अपने थेले से कुछ कागज़ बाहर निकाले और उन्हें सुधांशु को देते हुए कहा, 'मैं अपने प्रस्ताव के साथ भरे नामांकन पत्र और उसके साथ लगाए गए शपथपत्रों की प्रतिलिपियाँ सुधांशु जी को दे रहा हूँ. इन से आपको मेरा पूरा परिचय मिल जायेगा. इन शपथपत्रों में जो संकल्प मैंने किये हैं उनकी प्रतिलिपियाँ मैं जल्दी ही आप सबको उपलब्ध करा दूंगा. आप उन्हें पढिये और तय कीजिए कि क्या मैं आपका उचित प्रतिनिधित्व कर सकूंगा. यदि आपको यह विश्वास हो जाए तो मेरे प्रस्ताव पर अनुमोदन मत दीजियेगा.'

सुधांशु ने उन कागजों पर निगाह डाली. वह कुछ चकित सा लग रहा था. उसने पूछा, 'इनमें ऐसे शपथपत्र भी हैं जिनकी कानून के हिसाब से जरूरत नहीं है'. 

अमरेन्द्र ने कहा, 'आपकी बात सही है. पर मेरे हिसाब से यह सब जरूरी है. मैंने जिनका प्रतिनिधित्व करने का प्रस्ताव किया है उन्हें यह अधिकार है कि वह मेरे बारे में सब कुछ जानें. मैं भीष्म पितामह नहीं हूँ, पर जो शपथ मैंने ली हैं उन्हें निभाने में उनसे कम नहीं रहूँगा'. 

सुधांशु ने घडी पर नजर डाली और कहा,'समय के अभाव के कारण हमें यह कार्यक्रम यहीं समाप्त करना होगा. विश्वास कीजिए इन कागजों में जो लिखा है वह किसी भीष्म प्रतीज्ञा से कम नहीं है. मुझे लगता है कि यह कार्यक्रम हमें अब रोज प्रसारित करना होगा. अमरेन्द्र जी से मेरा निवेदन है कि इस कार्यक्रम के लिए समय निकालें. उनके विचार जनता तक पहुँचाना जरूरी है, नमस्कार'. 

क्रमशः 

Thursday, February 26, 2009

मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूँ !!!

चुनाव का मौसम आ गया था. राजनीतिक उठा-पटक जोर-शोर से शुरू हो गई थी, पार्टियों के बीच सीटों के लिए, और पार्टी के अन्दर टिकटों के लिए. बंद दरवाजों के पीछे टिकटों की नीलामी बंद हो चुकी थी. लागों का कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी दो ही मापदंड थे - बफादारी और टिकट की कीमत. सच्चाई, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा जैसे शब्द पहले ही बेमानी हो चुके हैं. आज की स्थिति को देख कर दो लाइनें याद आती हैं -
मवालियों को न देखा करो हिकारत से,
न जाने कौन सा गुंडा वजीर बन जाए.

हमारे चुनाव छेत्र से उम्मीदवारों ने नामांकन भर दिए थे. जांच हो चुकी थी और आधिकारिक रूप से जनता को पता चल चुका था कि कौन कौन महानुभाव चुनाव लड़ रहे हैं. एक टीवी चेनल ने घोषणा की कि वह सब उम्मीदवारों से इंटरव्यू प्रसारित करेंगे. टॉप के उम्मीदवारों के इंटरव्यू हो भी चुके थे. अपनी तारीफ़ और दूसरों को गालियाँ, बस यही हुआ. कोई नई बात नहीं. आज एक आखिरी उम्मीदवार का इंटरव्यू था. यह महानुभाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे. कम ही लोग उन्हें जानते थे. किसी को उनके इंटरव्यू में कोई दिलचस्पी नहीं थी. हमें भी नहीं. हमने कुछ मित्रों के साथ बाहर का एक कार्यक्रम बना रखा था. किसी कारण से यह कार्यक्रम रद्द हो गया. सोचा चलो इस आखिरी इंटरव्यू को भी देख लिया जाय. 

टीवी एंकर सुधांशु ने अपनी चेनल की तारीफ़ करने के बाद बताया कि आज उनके इस महान कार्यक्रम का आखिरी इंटरव्यू है. श्री अमरेन्द्र एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. उनके बारे में कुछ खास पता नहीं है, इसलिए उनसे प्रार्थना है कि स्वयं ही अपना परिचय दें. केमरा अमरेन्द्र जी के चेहरे पर फोकस हुआ. कोई ज्यादा उम्र नहीं होगी. ऐसा लग रहा था जैसे अभी भी पढ़ रहे हैं. उन्होंने ने नमस्कार किया और कहा, 'सुधांशु जी ने मेरा इतना ही परिचय आपको दिया है कि मैं एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा हूँ. यह परिचय गलत है. मैं चुनाव नहीं लड़ रहा हूँ'. 

मैंने सोचा मारे गए, अब यह श्रीमान कहेंगे कि मैं चुनाव लड़ नहीं रहा बल्कि उसमें भाग ले रहा हूँ. ऐसा मैंने एक फिल्म में देखा था जहाँ विलेन जनता को प्रभावित करने के लिए यही कहता है. एक बार सोचा कि टीवी बंद कर दें, पर कोई और काम नहीं था इसलिए चलने दिया. अमरेन्द्र जी ने हमें गलत साबित कर दिया. 

उन्होंने कहा, 'चुनाव कोई लड़ाई नहीं है. चुनाव एक प्रक्रिया है जिस के माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है, और इस पक्रिया की आवश्यकता भी तब पड़ती है जब जनता को एक से अधिक व्यक्तियों में से किसी एक को चुनना होता है'.  

सुधांशु ने कहा कि सब ऐसा ही कहते हैं कि हम चुनाव लड़ रहे हैं. अमरेन्द्र ने कहा, 'आपकी बात सही है कि लोग ऐसा कहते हैं, पर यह गलत है. मैं अपना परिचय चुनाव लड़ने वाले के रूप में नहीं देना चाहूँगा. मैं यह भी नहीं कहूँगा कि मैं चुनाव में भाग ले रहा हूँ. मेरा आप सब से निवेदन है कि मेरी बात ध्यान से सुनें. हमारे देश में प्रजातंत्र है. इस के अंतर्गत जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि लोक सभा में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, और एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत देश का प्रवंधन करते हैं. कोई भी नागरिक, जनता के सामने उनका प्रतिनिधित्व करने का प्रस्ताव रख सकता है. जनता यदि उसके प्रस्ताव का अनुमोदन करती है तब वह व्यक्ति लोक सभा में पांच वर्ष तक उस छेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करता है. मैंने अगले पांच वर्ष तक जनता के समक्ष उनका प्रतिनिधित्व करने का प्रस्ताव रखा है. इसी तरह कुछ और लोगों ने भी ऐसा प्रस्ताव रखा है. जनता अब इन प्रस्तावकों में से किसी एक व्यक्ति के प्रस्ताव का अनुमोदन करेगी. इसके लिए चुनाव आयोग व्यवस्था करेगा और जनता मत के रूप में अपना अनुमोदन देगी. जिस प्रस्तावक को सबसे अधिक अनुमोदन  मत मिलेंगे वह आधिकारिक रूप से अगले पांच वर्षों तक जनता का लोक सभा में प्रतिनिधित्व करेगा.'

बात सीधी और साफ़ थी, बस भाषा अलग थी. सब लोग यह जानते भी थे, लेकिन जिस अंदाज में यह बात कही गई थी वह कुछ अलग था. मुझे ऐसा लगा कि अमरेन्द्र चुनाव को एक अलग तरह से परिभाषित करना चाहते हैं. सुधांशु ने कहा, 'क्या फर्क पड़ता है. बात तो वही है सिर्फ शब्दों का ही तो फर्क है'. 

अमरेन्द्र ने कहा, 'नहीं ऐसी बात नहीं है. शब्द बहुत ताकतवर होते हैं. जो शब्द हम बोलते हैं वह हमारे सोच को दर्शाते हैं और हमारे कर्म को निर्धारित करते हैं. अगर हम यह कहते हैं कि हम चुनाव लड़ रहे हैं तो हमारा सोच चुनाव को एक लड़ाई के रूप में देखता है और फिर हम उस लड़ाई को जीतने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. हमारा यह सोच हमसे हिंसा तक करवा देता है. चुनाव में जीतना हमारे लिए जीवन-म्रत्यु का प्रश्न बन जाता है. जब हम कोई वस्तु लड़ कर जीतते हैं तो उस का उपभोग करने की भावना हमारे अन्दर रहती है. चुनाव के बाद हम जनता के प्रतिनिधि नहीं, बल्कि उनके स्वामी बन जाते हैं. उनका लोक सभा में प्रतिनिधित्व करने की जगह हम जनता पर शासन करते हैं'.

अमरेन्द्र कुछ पलों के लिए रुके. केमरा सुधांशु से होता हुआ कक्ष में बैठे लोगों पर घूम गया. सब अवाक से लग रहे थे. यह सब कुछ उन्होंने इस तरह से नहीं सुना था. जो कुछ देश में हो रहा है उसे इस तरह भी कहा जा सकता है, यह सब के लिए एक नई बात थी. अमरेन्द्र ने फिर कहना शुरू किया, 'अब हम चुनाव को मात्र एक प्रक्रिया के रूप में लें, और खुद को  एक प्रस्तावक के रूप में, और जनता के मत को प्रस्ताव अनुमोदन के रूप में. इस से हमारा पूरा सोच ही बदल जाता है. क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे सोच वाले व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से जनता का प्रतिनिधित्व करेंगे. वह जनता के विश्वास के ट्रस्टी होंगे, जनता के शासक नहीं. ऐसे सोच वाले लोग ही देश में सच्चा प्रजातंत्र ला सकेंगे. आज देश का तंत्र राज करने के लिए है, जैसा राजतंत्र में होता है. नाम प्रजातंत्र है पर वास्तव में है राजतंत्र. राजनितिक दल यह कहने में गर्व अनुभव करते हैं कि देश में या प्रदेश में हमारा राज्य है. कोई उसे प्रजा का राज्य नहीं कहता. हमें आजादी मिली अंग्रेजों के राजतंत्र से, पर अब हम गुलाम हैं भारतीयों के राजतन्त्र के. प्रजातंत्र तो कहीं नजर ही नहीं आता. इसलिए मैं अपना परिचय एक प्रस्तावक के रूप में देना चाहूँगा. मैं प्रस्ताव करता हूँ इस छेत्र की जनता का अगले पांच वर्षों तक लोक सभा में प्रतिनिधित्व करने के लिए. मेरा निवेदन है कि आप मेरे प्रस्ताव का अनुमोदन करें और मुझे अपना प्रतिनिधित्व करने का अधिकार प्रदान करें'. यह कह कर अमरेन्द्र चुप हो गए. केमरा फिर सब पर घूम गया. सब अवाक से देख रहे थे. फिर एक कौने से ताली की गूँज उठी और सारा हाल तालियों की गूँज से भर गया. सब खड़े थे और तालियाँ बजा रहे थे. धीरे-धीरे तालियों शांत हुईं. सब बैठ गए. एक बुजुर्ग सज्जन खड़े थे. सुधांशु ने पुछा, 'क्या आप कुछ कहना चाहते हैं?' उन्होंने कहा, 'हाँ, अमरेन्द्र जी ने जो कहा वह मैंने सुना. आजादी के ६० वर्षों में किसी ने ऐसा नहीं कहा. कुछ समझ में आया और कुछ समझ में नहीं आया. पर न जाने क्यों मुझे एक आशा बंध रही है कि कुछ नया और सही होने वाला है, और यह बहुत बड़ी बात है'. 

क्रमशः 
 

blogger templates | Make Money Online