मैंने अपनी पिछली पोस्ट में उस दिवास्वप्न का जिक्र किया था जिसमें मैं अपने परिवार के साथ यमुना में नौका विहार कर रहा था. दिल्ली निवासियों ने, दिल्ली उद्योग ने, दिल्ली सरकार ने यमुना को इतना प्रदूषित कर दिया है कि इस दिवास्वप्न के सच होने की कल्पना भी नही की जा सकती. क्या यमुना कभी साफ़ नहीं होगी? क्या सारे शहर का और उद्योगों का कचरा ऐसे ही यमुना में डाला जाता रहेगा?
आज अखबार में एक ख़बर पढ़ कर कुछ आशा जगी है. अदालत ने दिल्ली जल बोर्ड के तीन उच्च अधिकारियों को दो सप्ताह की जेल की सजा सुनाई है. इन पर २०-२० हजार रुपए का जुर्माना भी किया गया है. जुर्माने का पैसा इन की तनख्वाह से काटा जायेगा. यह अधिकारी हैं - एक्स सीईओ अरुण माथुर, चीफ इंजिनियर आर के जैन और एक्जीक्यूटिव इंजिनियर पी पन्त. एक और अधिकारी बी एम् धौल को इस लिए माफ़ कर दिया गया क्योंकि वह रिटायर हो चुके हैं. मेरे विचार में सजा इन्हें भी मिलनी चाहिए थी.
फिलहाल अदालत ने यह सजा तीन महीने के लिए मुल्तबी कर दी है और यह आदेश दिया है कि इस दौरान दिल्ली जल बोर्ड यमुना में कचरा डालने को बिल्कुल बंद कर देगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो गए यह अधिकारी जेल.
अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जतायी है कि दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते और सजा से बचने के लिए झूठे बहाने बनाते हैं. अदालत के अनुसार बोर्ड में भ्रष्टाचार गहराई तक अपनी जड़े जमा चुका है. अब यह आशा कि जा सकती है कि बोर्ड कुछ करेगा क्योंकि अब उस के अधिकारियों पर सजा की तलवार लटक रही है. किसी ने सही कहा है - भय बिन होत न प्रीत.